Wednesday, 18 June 2014

श्री दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)

               

            श्री दुर्गा चालीसा  (Durga Chalisa)
                          
नमो नमो दुर्गे सुख करनी नमो नमो अम्बे दुःख हरनी
निराकार है ज्योति तुम्हारी तिहूं लोक फैली उजियारी
शशि ललाट मुख महा विशाला नेत्र लाल भृकुटी विकराला
रुप मातु को अधिक सुहावे दरश करत जन अति सुख पावे
तुम संसार शक्ति लय कीना पालन हेतु अन्न धन दीना
अन्नपूर्णा हुई जग पाला तुम ही आदि सुन्दरी बाला
प्रलयकाल सब नाशन हारी तुम गौरी शिव शंकर प्यारी
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें
रुप सरस्वती को तुम धारा दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा
धरा रुप नरसिंह को अम्बा प्रगट भई फाड़कर खम्बा
रक्षा कर प्रहलाद बचायो हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो
लक्ष्मी रुप धरो जग माही श्री नारायण अंग समाही
क्षीरसिन्धु में करत विलासा दयासिन्धु दीजै मन आसा
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी महिमा अमित जात बखानी
मातंगी धूमावति माता भुवनेश्वरि बगला सुखदाता
श्री भैरव तारा जग तारिणि छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी
केहरि वाहन सोह भवानी लांगुर वीर चलत अगवानी
कर में खप्पर खड्ग विराजे जाको देख काल डर भाजे
सोहे अस्त्र और तिरशूला जाते उठत शत्रु हिय शूला
नगर कोटि में तुम्ही विराजत तिहूं लोक में डंका बाजत
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे रक्तबीज शंखन संहारे
महिषासुर नृप अति अभिमानी जेहि अघ भार मही अकुलानी
रुप कराल कालिका धारा सेन सहित तुम तिहि संहारा
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब भई सहाय मातु तुम तब तब
अमरपुरी अरु बासव लोका तब महिमा सब रहें अशोका
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी तुम्हें सदा पूजें नर नारी
प्रेम भक्ति से जो यश गावै दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई जन्म-मरण ताको छुटि जाई
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी योग हो बिन शक्ति तुम्हारी
शंकर आचारज तप कीनो काम अरु क्रोध जीति सब लीनो
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को काहू काल नहिं सुमिरो तुमको
शक्ति रुप को मरम पायो शक्ति गई तब मन पछतायो
शरणागत हुई कीर्ति बखानी जय जय जय जगदम्ब भवानी
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा
मोको मातु कष्ट अति घेरो तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो
आशा तृष्णा निपट सतवे मोह मदादिक सब विनशावै
शत्रु नाश कीजै महारानी सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी
करौ कृपा हे मातु दयाला ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ
दुर्गा चालीसा जो नित गावै सब सुख भोग परम पद पावै
देवीदास शरण निज जानी करहु कृपा जगदम्ब भवानी
         ॥ जय माता दी
          



Chalisa Sangrah in Hindi

श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa)
       
 
|| दोहा ||
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
 || चौपाई ||
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥१
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥२
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥३
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥४
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥५
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥६
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥७
ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे॥८
कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥९
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी।१०
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥११
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥१२
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥१३
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥१४
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥१५
अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥१६
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥१७
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥१८
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥१९
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥२०
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥२१
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, शनि तुहि भायो॥२२
कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥२३
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥२४
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥२५
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥२६
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥२७
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥२८
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥२९
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥३०
बुद्घि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥३१
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥३२
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥३३
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥३४
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई। शेष सहसमुख सके गाई॥३५
मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥३६
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा॥३७
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥३८
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।३९
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥४०
    || दोहा ||
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥
|| इति श्री गणेश चालीसा समाप्त ||

Thursday, 12 June 2014

जानिए क्या आश्चर्य है, भगवान भी होते हैं बीमार, आखिर क्या है राज?

जानिए क्या है भगवान की बीमारी का राज
                                   

भगवान श्री कृष्ण धरती पर विष्णु के अवतार के रूप माने माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान आज भी मनुष्य रुप में विराजमान रहते हैं। इसलिए इनकी देख-रेख सेवा सत्कार मनुष्य की तरह ही होती है।
अगर भगवान भी मनुष्य रुप में हैं तो उनका बीमार होना भी स्वभाविक है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान धरती पर मानव रुप  धारण कर , लीला दिखाने आए थे तब स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन अधिक स्नान करने से बीमार हो गए थे।
इसलिए हर वर्ष उस घटना को याद करते हुए स्नान पूर्णिमा के दिन भगवान को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान  के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं।

जानिए कैसे होता है भगवान का उपचार

भगवान के बीमार हो जाने के बाद विशेष  जड़ी बूटियों से इनका उपचार किया जाता है। आम तौर पर जड़ी बूटी के के रूप मे  पीपल, शहद, जावित्री केसर से भगवान का उपचार होता है। ऐसा मानना है कि भगवान का इलाज 26 जून तक लगातार चलता है।
ऐसा मानना है कि ये भगवान के स्वस्थ होने तक मंदिर में सामन्य पूजा अर्चना बंद हो जाती है। मंदिर में घड़ी घंटे भी नहीं बजाए हैं और आरती होती है

भगवान के बीमार होने का दिन इस वर्ष 13 जून है। भगवान के स्वस्थ होने के बाद 29 जून को जगन्नाथ जी की भव्य रथ यात्रा निकलेगी।