शनि
से प्रभावित व्यक्ति - कैसे करें व्रत पूजा और मंत्र जाप?
वैसे
तो शनि से प्रभावित व्यक्ति को हर शनिवार तिल या सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़
के नीचे जलाने के उपाय बताए गए हैं शास्त्रों में, लेकिन शनिदेव को प्रसन्न करने के
लिए शास्त्रों में विधिवत व्रत का भी विधान बताया गया है। इसे किसी भी माह के शुक्ल
पक्ष के पहले शनिवार को शुरू किया जाता है। वैसे इसकी शुरुआत श्रावण मास के शनिवार
को श्रेष्ठ माना गया है। तिल के तेल से भरे लोहे के कटोरे में शनिदेव की लोहे की मूर्ति
का महत्व है।
जानिए
शनि भगवान के व्रत के नियम के उपाय -
1. व्रत के नियमों का पालन नियमित करते हुए प्रातः सूर्योदय से पहले उठना चाहिये। नित्यकर्म
से निपटकर घर को गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए। पूजा के लिए आवश्यक वस्तुओं में तिल
या सरसों का तेल, चावल, लौंग, नीले फूल व फल, काली उड़द, गुड़ काला वस्त्र है।
2. काले वस्त्र पहनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख कर शनि देव की मूर्ति के सामने पूजा पर बैठना
चाहिये। शनिदेव के प्रिय वस्तुओं से पूजन करने के बाद शनिदेव की आराधना शनि चालिसा,
शनिस्त्रोत पाठ और आरती से करना चाहिये। कथा सुननी चाहिए। उसके बाद पीपल में जल डालना
चाहिये तथा पीपल को सूत्र बांधकर सात परिक्रमा करना चाहिये ।
3. भगवान शनि देव के नाम से दीपक को पीपल के पेड़ के नीचे प्रत्येक शनिवार के दिन जलाना
चाहिये।
4. गवान शनि देव के व्रत के दिन एक समय में नारियल, तेल, चावल और उड़द के
दाल से बना नमक रहित भोजन करना चाहिये।
5. भगवान शनि देव की पूजा के बाद राहू और केतु की भी पूजा करनी चाहिए तथा हनुमान चालिसा
का भी पाठ नियम पूर्वक करना चाहिये।
6. भगवान शनि देव को प्रत्येक शनिवार को शाम के समय बड़ (बरगद) और पीपल के पेड़ के नीचे
सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद कड़वे तेल का दीपक जलाये और दूध एवं धूप आदि अर्पित
करें।
7. विशेष तर यह मान्यता है कि काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर
शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या भगवान शनि देव जयंती के शुभ मुहूर्त में धारण करने
से भी शनि संबंधी सब बाधा कष्ट से रक्षा कर सुख, शांति व सफलता मिलती है।
8. भगवान शनि देव मंत्र के 23000 जाप करें |
9. भगवान शनि देव को व्रत रखें। चींटियों को आटा डालें।
10. भगवान शनि देव के वैदिक मंत्रों - मंत्र- ऊँ ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नम:।
ऊँ प्रां प्रीं स: श्नैश्चराय
नम:|
11.
भगवान शनि देव के दिन इन 10 नामों से भगवान
शनि देव का पूजन करें-
कोणस्थ
पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:। सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।
अर्थात:
1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर,
9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से भगवान शनि देव का स्मरण करने से सभी शनि दोष
दूर हो जाते हैं।
विशेष (Note)- शनि ग्रह की शांति के लिए निम्नलिखित मंत्रों का यथाशक्ति जाप किया जाना चाहिए और घोड़े
की नाल का छल्ला पहनना चाहिये।
भगवान
शनि देव के बीज मंत्र:
ऊं
प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: ऊं शं शनिश्चराय नम:|
महामृत्युंजय
मंत्र का सवा लाख जप (नित्य 15 माला, 125 दिन) करें-
ऊँ
त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुर्क्षिय
मामृतात्।
भगवान
शनि देव के निम्नदत्त मंत्र का 21 दिन में 23 हजार जप करें-
ऊँ
शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
पौराणिक
शनि मंत्र:
ऊँ
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।
भगवान
शनि देव स्तोत्र -
भगवान
शनि देव के निम्नलिखित स्तोत्र का 11 बार पाठ करें या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ
करें.
कोणरथः
पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
सौरिः
शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥
तानि
शनि-नमानि जपेदश्वत्थसत्रियौ।
शनैश्चरकृता
पीडा न कदाचिद् भविष्यति॥
भगवान
शनि देव - साढेसाती पीड़ानाशक स्तोत्र –
नमस्ते
कोणसंस्थय पिड्.गलाय नमोस्तुते।
नमस्ते
बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
नमस्ते
रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते
यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते
यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
प्रसादं
कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
शनि चालीसा पाठ
।।
दोहा ।।
जय
गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन
के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।।
जय
जय श्री शनिदेव प्रभु,सुनहु विनय महाराज ।
करहु
कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ।।
जयति
जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।।
चारि
भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ।।
परम
विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।।
कुण्डल
श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके ।।
कर
में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं आरिहिं संहारा ।।
पिंगल,
कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ।।
सौरी,
मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।।
जा
पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । रंकहुं राव करैंक्षण माहीं ।।
पर्वतहू
तृण होई निहारत । तृण हू को पर्वत करि डारत ।।
राज
मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों ।।
बनहूं
में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चतुराई ।।
लखनहिं
शक्ति विकल करि डारा । मचिगा दल में हाहाकारा ।।
रावण
की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।।
दियो
कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ।।
नृप
विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ।।
हार
नौलाखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ।।
भारी
दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ।।
विनय
राग दीपक महं कीन्हों । तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों ।।
हरिश्चन्द्र
नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ।।
तैसे
नल परदशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ।।
श्री
शंकरहि गहयो जब जाई । पार्वती को सती कराई ।।
तनिक
विलोकत ही करि रीसा । नभ उडि़ गयो गौरिसुत सीसा ।।
पाण्डव
पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ।।
कौरव
के भी गति मति मारयो । युद्घ महाभारत करि डारयो ।।
रवि
कहं मुख महं धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ।।
शेष
देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ई ।।
वाहन
प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना ।।
जम्बुक
सिंह आदि नखधारी । सो फल जज्योतिष कहत पुकारी ।।
गज
वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ।।
गर्दभ
हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा ।।
जम्बुक
बुद्घि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्रण संहारै ।।
जब
आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ।।
तैसहि
चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांदी अरु तामा ।।
लौह
चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै ।।
समता
ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी ।।
जो
यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।।
अदभुत
नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।।
जो
पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।।
पीपल
जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ।।
कहत
रामसुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।।
।।
दोहा ।।
पाठ
शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार । करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।।
भगवान
शनि देव (दशरथ कृत शनि स्तोत्र)
नमःकृष्णाय
नीलाय शितिकंठनिभाय च|नमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||
नमो
निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च| नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नमः
पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||
नमस्ते
कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः| नमो घोराय
रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते
सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुते|सूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ||
अधोदृष्टे
नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||
तपसा
दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे|तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो
हरसि तत्क्षणात ||
देवासुर
मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||
प्रसादं
कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः ||
पद्म
पुराण में वर्णित भगवान शनि देव के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा
पूर्वक भगवान शनि देव की लोह की प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा
पूजन करके तिल ,काले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार
को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करेगा, उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं
होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी |
श्री
भगवान शनि देव आरती
जय
जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी | सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ||
जय
जय श्री शनिदेव…
श्याम
अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी | नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ||
जय
जय श्री शनिदेव…
क्रीट
मुकुट शीश रजित दीप्त है लिलारी | मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ||
जय
जय श्री शनिदेव…
मोदक
मिष्ठान पान चरत है सुपारी | लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ||
जय
जय श्री शनिदेव…
देव
दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी | विश्व नाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी || जय जय श्री
शनिदेव…
शोध युक्त रचना की जानकारियाँ प्रस्तुत करने हेतु शुभकामनाएं एक रचना -
ReplyDeleteअपनों को साथ रखना ,
पुरखों का इलाज करना \
रिश्तों के पास से
वे लम्हे निकल बिकल गये |
जीवन में देखा सपना,
सभी धू धू के जल गये|
मंगल कहाँ तलक जपता ,
जब सबके सब फिसल गये|
जिसके लिए नित हांफता ,
माजरे वे नित पूछते रहे !
सारे गम छोड़ चले ,
और संग लग चले |