भगवान शंकर "भोलेनाथ" को - सावन का पहला सोमवार जल चढ़ाओ और जो चाहे
मांग लो -
भगवान शंकर को “भोलेनाथ” की उपाधि इस कारण मिली कि वह स्वभाव से बेहद भोले हैं!
यू तो शंकर जी को रूद्र देवता
के रूप मे जाने जाते है जो अगर एक बार गुस्सा हो जाएं
तो प्रलय आ जाता है लेकिन
यह शंकर जी का ही रूप है जो मात्र
जल और बेलपत्र से प्रसन्न होकर
भक्त की सभी तरह के मनोकामना पूर्ण
करते हैं. क्या सुर क्या असुर भगवान
शिव सभी की नैया पार लगाते
है!
भगवान शिव को प्यारा सावन का महीना
सावन और शिव का भारतीय संस्कृति से गहरा मेल है सावन के आते ही शिव भक्तों में पूजा अर्चना के लिए नई उमंग जोश का संचार हो जाता
है शास्त्रों और पुराणों का कहना
है कि श्रावण मास भगवान शंकर
को अत्यंत प्रिय
है. इस माह में शिव अर्चना के लिए प्रमुख सामग्री बेलपत्र और धतूरा सहज प्राप्त हो जाता है
भगवान शिव ही ऐसे देवता जो कि शीघ्र ही
प्रसन्न हो जाते हैं जिनकी पूजा-अर्चना के लिए सामग्री को लेकर
किसी प्रकार की परेशानी नही होती, अगर कोई सामग्री उपलब्ध न हो तो जल ही काफी
है. भक्ति भाव के साथ जल अर्पित कीजिए और भगवान शिव प्रसन्न!
जल चढ़ाओ और जो चाहे मांग लो (Methods
of Shiva Puja )
सावन मास मे आशुतोष भगवान शंकर की पूजा
का विशेष महत्व
है सोमवार शंकर
जी का प्रिय
दिन है इसलिए
श्रावण सोमवार का महत्व और भी बढ़ जाता है इस महीने प्रत्येक सोमवार भगवान शिव का व्रत करने
से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है इस
मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करके प्रत्येक सोमवार को शिवजी
का व्रत करना
चाहिए!
सावन व्रत
विधि (Shiv pujan vidhi)
श्रावण मास में आने वाले सोमवार के दिनों में भगवान
शिवजी
"भोलेनाथ" का व्रत करना चाहिए
और व्रत करने
के बाद भगवान
श्री गणेश जी, भगवान शिव जी, माता पार्वती व नन्दी देव की पूजा करनी चाहिए!
पूजन सामग्री में जल, दूध, दही,
चीनी, घी, शहद,
पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली,
चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गट्ठा,
प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा,
दक्षिणा चढाये !
शिव पूजन में बेलपत्र प्रयोग करना जरूरी
भगवान शिव "भोलेनाथ" की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है तो भगवान अपने भक्त
की कामना बिना
कहे ही पूरी
करते है अतः बेलपत्र के बारे
मे यह मान्यता प्रसिद्ध है कि बेल के पेड़ को जो भक्त
पानी या गंगाजल से सींचता है, उसे समस्त तीर्थों की प्राप्ति होती है वह भक्त
इस लोक में सुख भोगकर, शिवलोक मे प्रस्थान करता है!
मंत्र-भगवान शिव (Mantra- Lord Siva)
Bhagvan
Bholenath ki pooja ke dauran is mantra ke dwara Shivji ko snaan samarpan karna
chahiye-
om
varunasyottambhanamasi varunasya sakambh sarjjaneestho |
Varunasya
ritsadanyasi varunasya ritsadanamasi varunasya ritsadanmaaseed ||
भगवान भोलेनाथ की पूजा
के दौरान इस मंत्र के द्वारा शिवजी को स्नान
समर्पण करना चाहिए-
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ
सर्ज्जनीस्थो!
वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद्!!
Bhagvan Shiv
ki pooja karte samay is mantra ke dwara unhe yagyopaveet samarpan karna
chahiye-
Om Brahm
Jgyaanaprathamam Purastaadvisematah Surucho Ven Aavah |
Sa Budhnyaa
Upma Asya Vishthah Satashch Yonimastashch Vivah ||
भगवान शिव की पूजा
करते समय इस मंत्र के द्वारा उन्हें यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए-
ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः!
स बुध्न्या उपमा अस्य
विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः!!
Shivji ki
pooja me is mantra ke dwara Bhagvan Bholenath ko gandh samarpan karna chahiye-
Om Namah
Shvabhyah Shvapatibhyashch Vo Namo Namo Bhavaay Ch Rudraay Ch Namah |
Sharvaay Ch
Pashupataye Ch Namo Neelgreevaay Ch Shitikanthaay Ch ||
शिवजी की पूजा में इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथ को गंध समर्पण करना चाहिए-
ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय
च रुद्राय च नमः!
शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च !!
Bhagvan
Bholenath ki pooja ke dauran is mantra ke dwara trilochnaay Bhagvan Shiv ko
pushp samarpan karna chahiye-
Om Namah
Paaryaay Chaavaaryaay Ch Namah Prataranaay Chottaranaay Ch |
Namasteerthyaay
Ch Koolyaay Ch Namah Shashpyaay Ch Fenyaay Ch ||
भगवान भोलेनाथ की पूजा
के दौरान इस मंत्र के द्वारा त्रिलोचनाय भगवान शिव को पुष्प समर्पण करना चाहिए-
ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च!
नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च!!
Shiv ki
pooja me is mantra ke dwara Ardhnarishwar Bhagvan Bholenath ko dhoop samarpan
karna chahiye-
Om Namah
Kapardine Ch Vyupt Keshaay Ch Namah Sahastrakshaay Ch Shatdhanvane Ch |
Namo
Girishayaay Ch Shipivishtaay Ch Namo Medhushtamaay Cheshumate Ch ||
शिव की पूजा में इस मंत्र के द्वारा अर्धनारीश्वर भगवान भोलेनाथ को धूप समर्पण करना चाहिए-
ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च!
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च!!
Is mantra ke
dwara Chandrashekhar Bhagvan Bholenath ko naivedya arpan karna chahiye-
Om Namo
Jyeshthaay Ch Kanishthay Ch Namah Poorvajaay Chaaparjaay Ch |
Namo
Madhyamaay Chaapgalbhaay Ch Namo Jaghnyaay Ch Budhnyaay Ch ||
इस मंत्र के द्वारा चन्द्रशेखर भगवान भोलेनाथ को नैवेद्य अर्पण
करना चाहिए-
ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च!
नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुधन्याय च!!
Shiv Pooja
ke dauran is mantra ke dwara Bhagvan Shiv ko Taambul Pugifal samarpan karna
chahiye-
Om Imaa
Rudraay Tavase Kapardine Kshaydveeraay Prabhramahe Mateeh |
Yasha
Shamshad Dvipade Chatushpade Vishwam Pushtam Grame Astimannanaaturam ||
शिव पूजा के दौरान
इस मंत्र के द्वारा भगवान शिव को ताम्बूल पूगीफल समर्पण करना चाहिए-
ॐ इमा रुद्राय तवसे
कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः
|
यशा शमशद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिमन्ननातुराम् ||
Bhagvan Shiv
ki pooja karte samay is mantra se Bholenath ko sugandhit tel samarpan karna
chahiye-
Om Namah
Kapardine Ch Vyupt Keshaay Ch Namah Sahastraakshaay Ch Shatdhanvane Ch |
Namo
Girishayaay Ch Shipivishtaay Ch Namo Medhushtmaay Cheshumate Ch ||
भगवान शिव की पूजा
करते समय इस मंत्र से भोलेनाथ को सुगन्धित तेल समर्पण करना चाहिए-
ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च |
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ||
Is mantra ke
dwara Bhagvan Bholenath ko deep darshan karana chahiye-
Om namah
aaradhe chaatriraay ch namah sheeghrayaay ch sheebhyaay ch |
namah
urmyaay chaavasvanyaay ch namo naadeyaay ch dveepyaay ch ||
इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथ को दीप दर्शन कराना
चाहिए-
ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च |
नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च ||
Is mantra se
Bhagvan Shivji ko Bilvapatra samarpan karna chaiye-
Darshanam Bilvapatrasya
Sparshanam Paapnaashanam |
Aghorpaapsanharam
Bilvapatram Shivarpanam ||
इस मंत्र से भगवान
शिवजी को बिल्वपत्र समर्पण करना चाहिए-
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम् |
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||
महामृत्युंजय मंत्र : पूर्ण मंत्र एवम नियम विधि
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा
प्राप्त करने का माध्यम है इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली कष्ट अथवा
मौजूदा बीमारियां, अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव समाप्त हो
जाता है, इस मंत्र
के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है ये बहुत ही अदभुत चमत्कारी मंत्र
है|
हमारे चार वेदों में से एक ऋग्वेद में महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार दिया गया है
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
इस मंत्र को संपुटयुक्त बनाने के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता
है
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
इस मंत्र
का अर्थ है :
हम भगवान शंकर
की पूजा करते
हैं, जिनके तीन नेत्र है जो प्रत्येक श्वास मे जीवन शक्ति का संचार
करते है, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी
शक्ति से कर करते है उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमे मृत्यु के बंधनो से मुक्त कर दे, जिससे हमे मोक्ष
की प्राप्ति हो जाए, जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी
बेल मे पक जाने
के उपरांत उस बेल-रूपी संसार
के बंधन से मुक्त हो जाती
है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने
के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनो से सदा के लिए मुक्त हो जाएं,
तथा आपके चरणों
की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही मे बिलीन हो जाएं |
श्री शिव चालीसा (Shri Shiv Chalisa)
|| चौपाई ||
अज अनादि अविगत अलख,
अकल अतुल अविकार।
बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव
उदार॥
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति
-मुक्ति -दातार।
करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार॥
पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार।
सहज सुहृद पावन-पतित,
सहजहि लेहु उबार॥
पलक-पलक आशा भर्यो,
रह्यो सुबाट निहार।
ढरौ तुरन्त स्वभाववश, नेक न करौ अबार॥
जय शिव शङ्कर औढरदानी।
जय गिरितनया मातु भवानी॥
सर्वोत्तम योगी योगेश्वर।
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर॥
सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता।
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता॥
पराशक्ति - पति अखिल विश्वपति।
परब्रह्म परधाम परमगति॥
सर्वातीत अनन्य सर्वगत।
निजस्वरूप महिमामें स्थितरत॥
अंगभूति - भूषित श्मशानचर।
भुजंगभूषण चन्द्रमुकुटधर॥
वृषवाहन नंदीगणनायक।
अखिल विश्व के भाग्य-विधायक॥
व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर।
रीछचर्म ओढे गिरिजावर॥
कर त्रिशूल डमरूवर राजत।
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत॥
तनु कर्पूर-गोर उज्ज्वलतम।
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम॥
भाल त्रिपुण्ड्र मुण्डमालाधर।
गल रुद्राक्ष-माल शोभाकर॥
विधि-हरि-रुद्र त्रिविध वपुधारी।
बने सृजन-पालन-लयकारी॥
तुम हो नित्य दया के सागर।
आशुतोष आनन्द-उजागर॥
अति दयालु भोले भण्डारी।
अग-जग सबके मंगलकारी॥
सती-पार्वती के प्राणेश्वर।
स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर॥
हरि-हर एक रूप गुणशीला।
करत स्वामि-सेवक की लीला॥
रहते दोउ पूजत पुजवावत।
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत॥
मारुति बन हरि-सेवा
कीन्ही।
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही॥
जग-जित घोर हलाहल
पीकर।
बने सदाशिव नीलकंठ वर॥
असुरासुर शुचि वरद शुभंकर।
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर॥
नम: शिवाय मन्त्र जपत मिटत सब क्लेश
भयंकर॥
जो नर-नारि रटत शिव-शिव नित।
तिनको शिव अति करत परमहित॥
श्रीकृष्ण तप कीन्हों भारी।
ह्वै प्रसन्न वर दियो
पुरारी॥
अर्जुन संग लडे किरात
बन।
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित
मन॥
भक्तन के सब कष्ट
निवारे।
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे॥
शङ्खचूड जालन्धर मारे।
दैत्य असंख्य प्राण हर तारे॥
अन्धकको गणपति पद दीन्हों।
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों॥
तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं।
बाणासुर गणपति-गति कीन्हीं॥
अष्टमूर्ति पंचानन चिन्मय।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग ज्योतिर्मय॥
भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा।
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा॥
काशी मरत जंतु अवलोकी।
देत मुक्ति -पद करत अशोकी॥
भक्त भगीरथ की रुचि
राखी।
जटा बसी गंगा सुर साखी॥
रुरु अगस्त्य उपमन्यू ज्ञानी।
ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी॥
शिवरहस्य शिवज्ञान प्रचारक।
शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक॥
इनके शुभ सुमिरनतें शंकर।
देत मुदित ह्वै अति दुर्लभ वर॥
अति उदार करुणावरुणालय।
हरण दैन्य-दारिद्रय-दु:ख-भय॥
तुम्हरो भजन परम हितकारी।
विप्र शूद्र सब ही अधिकारी॥
बालक वृद्ध नारि-नर ध्यावहिं।
ते अलभ्य शिवपद को पावहिं॥
भेदशून्य तुम सबके स्वामी।
सहज सुहृद सेवक अनुगामी॥
जो जन शरण तुम्हारी आवत।
सकल दुरित तत्काल नशावत॥
|| दोहा ||
बहन करौ तुम शीलवश,
निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार॥
तुम्हरो शील स्वभाव लखि,
जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय॥
दीन-हीन अति मलिन
मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत,
करो पाप सब छार॥
कृपा सुधा बरसाय पुनि,
शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥
।। इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।।
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