Tuesday, 15 April 2014

श्रीशनि आराधना के प्रमुख मंत्र व स्तोत्र - कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न

शनिदेव कौन हैं शनि देव से इंसान के जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है|
सूर्य पुत्र शनि देव अति शक्तिशाली न्याय प्रिय देवता माने जाते हैं और इनका इंसान के जीवन में बहुत  अद्भुत महत्व है
सूर्यपुत्र श्री शनि देव मृत्युलोक के ऐसे स्वामी हैंजो व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों के आधार पर सजा देकर शनिदेव उन्हें सुधरने का अवसर देते हैं
आमतौर पर यह धारणा लोगो के मन मे कि शनि देव मनुष्यों के शत्रु हैं  क्लेश, दुःख, पीड़ा, व्यथा, व्यसन, पराभव आदि शनिदेव की साढ़ेसाती के कारण पैदा होता है.
लेकिन, सच्चाई यह भी है कि शनि देव उन्हीं को दंडित करते हैं जो बुरा कर्म करते हैं अर्थात, जो जैसा करेगा वो वैसा ही भरेगा, शनि देव के नियमों के अनुसार अगर हमने कुछ स्वार्थवश गलत किया है तो वह उसका फल फौरन ही शनिदेव देते है
शनिदेव मोक्ष प्रदाता ग्रह है और शनिदेव  ही शुभ ग्रहों से कहीं अधिक अच्छा फल देता है
शनि देव के प्रति लोगों में जो डर है उसी के कारण वो दुर्व्यवहार करने से बचते भी हैं सच्चाई तो यह है कि अगर हम कोई दुर्व्यवहार ना करें तो शनि देव हमारे हमेशा मित्र कि तरह व्यहार करते है.
ऐसी मान्यता है इंसान बुरे कर्मों मे लिप्त है जैसे कि चोरी, डकैती, व्यभिचार, परस्त्रीगमन, दुर्व्यसन तथा झूठ से जीवनयापन नहीं करना चाहिए. यदि कोई इंसान  झूठे के  रास्ते पर चला गया है तो शनि देव उसे दंड अवश्य देते है अन्यथा परम संतुष्ट होकर पहले से अधिक संपत्ति, यश, कीर्ति, वैभव प्रदान करते है.
शनि देव की साढ़ेसाती का बहुत खौफ लोगों में होता है साढ़ेसाती यानी सात वर्ष का कालावधि(बुरा समय).
शनि देव सभी द्वादश (बारह) राशि घूमने के लिए तीस साल का समय लेता है यानी एक राशि में शनि ढाई वर्ष तक रहता है जब शनि जन्म राशि के बारहवें (जन्मराशि में से द्वितीया में भ्रमण करता है) तब परिपूर्ण काल शनि की साढ़ेसाती का माना जाता है
शनिदेव एक राशि में ढाई वर्ष होते है, इस प्रकार तीन राशि में शनि के कुल निवास साढ़ेसाती कहते हैं यानी ये साढ़ेसात वर्ष काफी तकलीफ कष्ट आफत और मुसीबतों का समय होता है किवदंती के अनुसार वीर राजा विक्रमादित्य भी शनिदेव की साढ़ेसाती के प्रभाव में आये थे तभी उनका राजपाठ सब कुछ छिन गया था
जिस राशि में शनि की साढ़ेसाती लगती है उस राशि के व्यक्ति को शनि महामंत्र के 23 हजार मंत्रों के जाप को साढ़े सात वर्षों के भीतर करना अनिवार्य है
शनिदेव के महामंत्र  जाप 23 दिनों के अंदर पूरा करना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि शनि महामंत्र जाप एक ही बैठक में नित्य एक ही स्थान पर पूरा करना चाहिए.
शनिदेव के महामंत्र हैः
ऊं निलांजन समाभासम्। रविपुत्रम यमाग्रजम्।।
छाया मार्तंड सम्भूतम। तम् नमामि शनैश्चरम्।।

शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे अनुकूल मंत्र यह है
शनि मंत्र - शं शनैश्चराय नम:, इस मंत्र का जाप नियमित करे.इस दिन आप श्री शनि देव के दर्शन जरूर करें।
*शनिदेव की दशा में अनुकूल फल प्राप्ति कराने वाला मंत्र - ( ओम् प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:)
हमारे देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई सारे मंदिर हैं लेकिन उनमें सर्वाधिक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर हैं ये विश्व प्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदेव की प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है और यह काफी प्रभावशाली है
शिंगणापुर के इस शनि मंदिर में लोहा एवं पत्थर युक्त दिखाई देनेवाली, काले वर्ण की शनिदेव की प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी और एक फीट 6 इंच चौड़ी है जो धूप, ठंड तथा बरसात में दिनरात खुले में है.

श्री शनिदेव के शिंगणापुर  बारे में यह प्रचलित है कि यहां, ‘देवता हैं, लेकिन मंदिर नहीं. घर है लेकिन दरवाजा नहीं, वृक्ष है पर छाया नहीं, भय है पर शत्रु नहीं
श्री शिंगणापुर की ख्याति इतनी है कि आज यहां प्रतिदिन 14 हजार से ज्यादा लोग दर्शन करने आते हैं और शनि अमावस, शनि जयंती को लगने वाले मेला में करीब 12 लाख लोग आते हैं और शिंगणापुर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां घरों में किवाड़ नहीं होते, सायद आपको सुनके बड़ा आश्चर्य लगा होगा पर सच्चाई यही है|

शनि देव के लिए पांच सूत्र का पालन करने को कहा जाता है ये पांच सूत्र हैं- जीवन के हर्षित पल में शनि की प्रशंसा करनी चाहिए. आपत् काल में भी शनि का दर्शन करना चाहिए, मुश्किल समय में शनिदेव की पूजा करनी चाहिए. जीवन के हर पल शनिदेव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना चाहिए.

शिंगणापुर में हर साल शनि जयंती बड़े धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन शनिदेव का जन्मदिवस मनाया जाता है प्रत्येक वर्ष वैशाख वद्य चतुर्दशी- अमावस के दिन आमतौर पर शनि जयंती आता,बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है
इस दिन शिंगणापुर में शनि देव की प्रतिमा निल वर्ण की दिखती है 5 दिनों तक यज्ञ और सात दिन तक भजन-प्रवचन कीर्तन का सप्ताह कड़ी धूप में लगातार चलता रहता है इस दिन यहां ग्यारह ब्राह्मण पंडितों से लघुरुद्राभिषेक समपन्न होता है यह कुल 12 घंटे तक चलता है अंत में महापूजा से उत्सव का समापन होता है भंडारा किया जाता है


कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न -
शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं। इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए।
शनिवार के दिन शनि देव की विशेष पूजा होती है। शहर के हर छोटे बड़े शनि मंदिर में सुबह ही आपको शनि भक्त देखने को मिल जाएंगे।
* शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवंती का फूल, तिल, तेल, गु़ड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
* शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने-अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।

शनि चालिसा (Shani Chalisa ) -

॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

शनि चालिसा
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥


शनीकवच (Shani Kavacham ) -
I शनि कवचं II
अथ श्री शनिकवचम्
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II
अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II
शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् II
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः II II
ब्रह्मोवाच II
 श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् I
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् II II
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् I
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् II II
श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः I
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः II II
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा I
स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः II II
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः I
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा II II
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा I
ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा II II
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः I
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः II II
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः I
तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः II II
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा I
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः II १० II
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे I
कवचं पठतो नित्यं पीडा जायते क्वचित् II ११ II
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा I
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा I
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः II १२ II
 II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं II


नि स्त्रोत(Shani Stotra) – 
नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते वभ्रूरूपाय कृष्णाय नमोस्तु ते॥
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च। नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते। प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

जाने-अनजाने में हुए पाप-कर्म एवं अपराधों के लिए शनिदेव से क्षमा याचना करें।
साढ़ेसाती में लाभ: शनि स्त्रोत, शनि मंत्र, शनि वज्रपिंजर कवच तथा महाकाल शनि मृत्युंजय स्त्रोत का पाठ करने से जिन जातकों को शनि की साढ़ेसाती ढैया चल रहा है, उन्हें मानसिक शांति, कवच की प्राप्ति तथा सुरक्षा के साथ भाग्य उन्नति का लाभ होता है। सामान्य जातक जिन्हें ढैया अथवा साढ़ेसाती नहीं है, वे शनि कृपा प्राप्ति के लिए अपंग आश्रम में भोजन तथा चिकित्सालय में रुग्णों को ब्रेड बिस्किट बांट सकते हैं।
* महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य 10 माला, 125 दिन) करें-
- त्र्यम्बकम्यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
* शनि के निम्न मंत्र का 21 दिन में 23 हजार जप करें -
- शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
* पौराणिक शनि मंत्र :
- ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्


शनि स्तवराज (Shani Stavraj )

।।शनि स्तवराज।।
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः। धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोवतु। कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।

घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोवतु। स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोवतु ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोवतु ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः ।।

पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च भवेन्नात्र संशयः सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शन।।

शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः। मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।।

ग्रहराजः कराली सूर्यपुत्रो रविः शशी कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुत।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा। शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।।

विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः। कर्ता हर्ता पालयिता राज्यभुग् राज्यदायकः ।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः। क्रूरकर्मविधाता सर्वकर्मावरोधकः ।।

तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।।

आदित्यभयदाता मृत्युरादित्यनंदनः। शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।।
तिथ्यात्मा तिथिगणनो नक्षत्रगणनायकः योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।।

शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः। अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।।

पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति। जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।।

दशासु गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते वाधा यान्यग्रहाणां यः पठेत्तस्य नश्यति ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।। स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चरः
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।




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